ना जाने कैसे कैसे मोड़ पे खुद को खड़ा पता हूँ,
किस मोड़ पे मोडू, इसी दुबिधा में पड़ जाता हूँ।
जिस मोड़ पे जाता हूँ, पीछे कुछ छोड़ जाता हूँ,
आधी दूर चलकर फिर वहीँ रुक जाता हूँ।
जो पीछे छूटे मोड़, उसकी सोच में पड़ जाता हूँ,
ना जाने कैसे कैसे मोड़ पे खुद को खड़ा पता हूँ।