कह दूँ बचपन की अपनी कहानी, जीवन की थी वो अनमोल निशानी।
कुछ बातें लगती नई हमारी, कुछ हो गई है पुरानी।
मिट्टी के घरोंदे बनाना और बारिश में कागज की कश्ती थी चलानी।
शीशे के कंचे थे खेल हमारे और दादी-नानी की प्यारी कहानी।
थे रंग बिखरे हजार, पर कोरे कागजों पर थी सजानी।
इंद्रधनुष के सतरंगी ने ख्वाबों पे लगाई थी निशानी।
पतंगों से चाहत चाँद को छूने की थी, पर तितली थी मेरी दीवानी।
बागों में था रस चुराना और फूलों की खुशबु लगती थी सुहानी।
करता था गलतियां सारे, पर उसमे भी थी नादानी।
न देखा अपना पराया, बस हर रिश्ते को थी निभानी।
ना था कुछ खोने का डर, हर पल थी बडी ही मस्तानी।
लौटा दे मेरा बचपन, हर पल याद आती वो ज़िंदगानी।