आज मिले हैं कुछ पल फुरसत के,
यादों के किस्से, सुनाने की तमन्ना है।
थी वो महफिलें यारों की, खुशियों के बहारों की,
आज फिर उसे याद कर, मुस्कुराने की तमन्ना है।
था कभी बेवजह हँसना, कभी मुस्कुराना,
तो कभी यूँ था शोर मचाना,
आज फिर वो जिंदगी, जीने की तमन्ना है।
थी सुबह की रौशनी और शाम की लाली,
होती थी दोस्तों संग, हाथों में चाय की प्याली,
था नशा हर उस प्याले का,
आज वो जाम, पीने की तमन्ना है।
था सिखाया उसने गमो पे भी हंसना,
लड़खड़ाते राहों पर कैसे था चलना,
उम्मीदों की आस लिए सबसे है दूर,
आज फिर तुमसे, मिलने की तमन्ना है।
